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शनिवार, 28 मार्च 2009

भाजपा - फिर से उन्मादम् शरणम् गाच्छामि

भारतीय राजनीति को विकास, गरीबी, अमीरी,मंहगाई, बेरोजगारी के मुद्दों से भटकाकर उसे धार्मिक उन्माद के बीहड़ में धकेलने के लिए यदि किसी एक राजनीतिक दल ने सर्वाधिक योगदान दिया है तो वह भारतीय जनता पार्टी ही है। इसे आत्मविश्वास की कमी कहें या सुविधाजनक रास्ता पकडने की आदत भाजपा जनसंघ के जमाने से ही भावनात्मक मुद्दों की तलाश में भटकती रही। बाबरी मस्जिद के ध्वंस से लेकर गुजरात दंगों तक कई कुख्यात कांडों को अंजाम देने वाली इस पार्टी की मुश्किल यह है कि वह भारतीय जनमानस पर यकीन करने के बजाय अयातुल्ला खुमैनी की विचारधारा पर ज्यादा यकीन रखती है।
आपातकाल में कई नृशंस कांडों के खलनायक रहे संजय गांधी और इंसानों के बजाय जानवर प्रेमी मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी आरएसएस की नेकर पहनें या कुछ भी न पहनें इसे लेकर अपने को कोई समस्या नहीं है। वरुण संजय गांधी नाम के इस शख्स के नाम के साथ गांधी का जुडना उतना ही अटपटा लगता है जितना कि उसके पिता के नाम के साथ। लेकिन फिर भी यह कोई ऐसी बात नहीं है जिसे लेकर हाय-तौबा मचाई जाय। यदि गांधी के नाम से इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक कईयों का भला हो गया है तो वरुण गांधी का भी हो जाय तो इस देश का क्या जाता है। लेकिन आपत्तिजनक यह है कि जो व्यक्ति अपने भाषण में गांधी को दुनिया का सबसे बड़ा बेवकूफ बता रहा हो उसे गांधी के नाम का इस्तेमाल करने में शर्म क्यों नहीं आ रही है। वरुण यदि गांधी से इतनी नफरत करते हैं तो वह अपने नाम से गांधी हटा दें और वरुण संजय या वरुण फिरोज के नाम से राजनीति करने का साहस दिखायें। गांधी को गाली और उसी गांधी के नाम का लाभ उठाना यह कहां की नैतिकता है। वरुण संजय गांधी ने गांधी के विचारों के प्रति जो नफरत व्यक्त की है वह दरअसल वही है जो नाथूराम गोडसे सन् १९४८ में अपनी गोली और बोली से व्यक्त कर चुके थे। इसे इतिहास की बिडंबना कहें कि आजादी की आधी सदी के बाद भारत के भाग्य में ऐसा गांधी देखना भी लिखा था जो गांधी के हत्यारे गोडसे की विरासत का वारिस है।
गोपाल गोडसे की गांधी वध क्यों किताब को गीता की तरह पढने वाली भगवा ब्रिगेडों के लिए वरुण संजय गांधी ऐसे गांधी के रुप में मिले हैं जो गांधी के विचार से लड़ने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। वरुण संजय गांधी अपने पहले भाषण में यदि सीधे गांधी पर हमला करते हैं तो यह भगवा ब्रिगेडों की सुचिंतित रणनीति का हिस्सा है। अब भगवा गांधी ही गांधी पर हमला करेगा।
भगवा ब्रिगेडों को गांधी से सर्वाधिक परेशानी होती है। वे मार्क्स, लेनिन, माओ को बाहरी बताकर उनकी विचारधाराओं को विदेशी करार दे सकते हैं लेकिन गांधी के विचारों का वे कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि गांधी धार्मिक भी हैं तो धर्मनिरपेक्ष भी। वह ऐसी विरासत हैं जो गोडसे की राजनीतिक वंशावली के लिए सबसे बड़ा सरदर्द है। भगवा ब्रिगेडों सवर्ण कट्टरपंथी वर्णव्यवस्था के ध्वसं के लिए गांधी को १९२४ से निर्बाध गाली देते रहे हैं। लेकिन बावजूद इसके गांधी ज्यादा ताकतवर होते गए। इस वैचारिक शत्रुता के लिए जिस सेनापति की जरुरत थी वह उन्हें वरुण संजय गांधी के रुप में मिल गया है। क्योंकि वरुण एक साथ गांधी भी हैं तो नेहरु भी, इसलिए गांधी के विरुद्ध ऐसा सेनापति भगवा ब्रिगेडों को कहां मिलता।
लेकिन इस दीर्घकालीन राजनीति के अलावा चुनावी रणनीति भी है। वरुण संजय गांधी के कंधे पर सवार होकर भाजपा और संघ परिवार १९९१ की तरह उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिक उन्माद में झोंकना चाहते हैं। दरअसल भाजपा और संघ परिवार की यह बेचैनी तबसे और भी बढ़ गई जब उसके अपने गोपनीय सर्वेक्षणों और जनमत सर्वेक्षणों से भाजपा का ग्राफ नीचे गिरता दिखाई दे रहा है। यूपी में वह सन् २००४ के बराबर सीटें लाने की स्तिथि में नहीं है तो उत्तराखण्ड, राजस्थान, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, पंजाब में भी वह पहले जैसी कामयाबी दोहराने की स्थिति में नहीं है। इसके अलावा भाजपा के दूसरी पांत के नेता आड़वाणी के बजाय सन् २०१४ के प्रधानमंत्री की तैयारी में जुटे हैं। ऐसी स्थिति में लगातार दस वर्ष तक केंद्र की सत्ता से बाहर रहने की संभावना से भगवा कतारों में हड़कंप मचा हुआ है। इन ब्रिगेडों की कई परियोजनायें तो केंद्र सरकार की वित्तीय मदद पर ही पलती रही हैं। इसके अलावा इन ब्रिगेडों के कई पदाधिकारी और नेताओं को सरकारी संरक्षण इतना रास आ गया है कि अब वे भाजपा के सत्ता से बाहर होने की कल्पना मात्र से ही कांप जाते है। इसके अलावा भगवा ब्रिगेडों का पराक्रम भी तब ही ज्यादा जोर मारता है जब केंद्र और राज्य में उनकी अपनी सरकार हो। औरों की सरकार के रहते हुए भगवा ब्रिगेडें पंगा लेते हुए खौफ खाती हैं। इसलिए भाजपा और संघ परिवार दोनों को केंद्र में एक अदद अपनी सरकार चाहिए। इसके लिए उसने अब विकास, बेरोजगारी, मंहगाई, आर्थिक मंदी जैसे मुद्दे छोड़ दिए हैं। वह एक बार फिर उन्माद की शरण में है। अंत में एक दिलचस्प सवाल - संजय गांधी के जैविक उत्तराधिकारी वरुण क्या अपने पिता की राजनीतिक विरासत को भी वहन करने का साहस दिखायेगे। क्या वह नेहरु को कश्मीर समस्या समेत भारत की तमाम समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहरा सकेंगे।

10 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पोस्ट. ब्रेनवाश कला का एक अन्य अप्रतिम उदाहरण बना दिए गए हैं- वरुण. स्वागत गाँधी विचार को समर्पित मेरे ब्लॉग पर भी.

    (gandhivichar.blogspot.com)

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  2. अगर कोई सियार भेष या रंग बदल ले तो वह शेर या हाथी नहीं हो सकता; इसी तरह वरुण चाहें गांधी लगाएं या फिरोज या फिर नेहरु, वह न गांधी से लड़ सकते हैं, न फिरोज से और न नेहरु से।

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  3. सादर अभिवादन
    सबसे पहले तो आपकी रचना के लिए ढेरो बधाई
    ब्लोग्स के नए साथियो में आपका बहुत बहुत स्वागत

    चलिए एक मुक्तक से अपना परिचय करा रहा हूँ

    चले हैं इस तिमिर को हम , करारी मात देने को
    जहां बारिश नही होती , वहां बरसात देने को
    हमे पूरी तरह अपना , उठाकर हाथ बतलाओ
    यहां पर कौन राजी है , हमारा साथ देने को

    सादर
    डा उदय ’मणि’ कौशिक
    http://mainsamayhun.blogspot.com

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  4. आपने बिल्कुल सटीक और सही कहा है भाई साहब। लेकिन देश के लिए भूख,बेरोज़गारी और मकान जैसे मुद्दे को आज भी चुनावी मुद्दा न बना पाना इस बात का संकेत देता है कि यह समस्याएं नेताओं के लिए लाभकारी रहती हैं क्योंकि सभी को सम्पन्न बना लिया तो वो चुनौती बन जाएगे! ऐसी सोच ही तो आज भ्रष्ट राजनीति को जीवित रखे हुए है और हम इसमें जीने के उसी तरह आदि हो गये हैं जिस तरह एक नशा लेने वाला व्यक्ति बिना नशा किए ज़िन्दा नहीं रह सकता। बात भाजपा की ही नहीं अन्य दलों में भी आसान मुद्दों पर चुनाव लड़ने बालों की कमी नहीं है। भाज़पा धर्म के नाम पर चुनाव तो लड़ती ही है इसमें भी दोराय नहीं।

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  5. mubarak ho aapni lekhni ab blog par bhi chalegi.........

    kailash kandwal

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  6. अच्छा आप बीबीसी में भी रहे हैं,
    ये नई जानकारी है मेरे लिये।
    किस सन से किस सन तक रहे आप बीबीसी
    में जानना चाहता हूं, क्योंकि मैंने भी 3 साल काटे हैं वहां।
    राजेश

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  7. I think he left for search out his term in BBC.

    Damn lame post. totally useless and factless.

    like he is not criticizing.....he is writing plot for some comedy drama.


    Regards,

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  8. aisi hee galiyan aap log rss aur rss ke bahane hinduon ko dete the jab 1947 se pahale hindu desh tootne kee aashanka prakat kar rahe the .aap tab bhee hindu sanghathnon ko hee dosh de rahe the jab
    1946 main purvi bangal ki soharavardi sarkar ne direct action ke naam par hajaron hinduon kee teen din ke andar hatya karva dee thee.tb aap hee naheen aap ke pampujya gandhi ji kamosh rahe the. sucheta krplani ne aap ke srdhyey bapu se punchha to bapu ka jabab tha ki abhee aatma kee aavaj naheen aayee hai.to kya poojyaneey kee aatmaa kaheen so rahee thee.filhal aaj aap log gandhi ke bhut bade bhakt ban gaye hain lekin kbhee bapu ko pujeepatiyon kaa dalal batate the.
    aap ko bhagva bura lagata hai leki puree duniyan ko hara kar dene kee jehadee jidnaheen dikhai deti. aap ko kashmeer main gunjane bali aablaaon kee cheekhen naheen sunai datee kyon ki be hindu hain .aap logon ke liye sangh samprdaik hai aur muslim leeg dharm nirpeksh.

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